इश्क..........
Thursday, May 12, 2011
इश्क फरमाने की जुदा रीत नहीं होती,
इश्क-मोहब्बत में हार-जीत नहीं होती,
मीरा जी ना सहेती राणा के हर सितम,
गर उन्हें भी कान्हा सें प्रीत नहीं होती,
क्यूँ सहेता वो भी सर-ऐ-बाज़ार पत्थर,
लैला जो मजनू की मन-मीत नहीं होती,
वो इश्क ही दफन हैं ताज महल में यारों,
कब्र होती तो इतनी बात-चीत नहीं होती,
ये सोच लोगों की दूर कर दे ‘योग्स’ की,
रब की दुआ इश्क कें मुहीत नहीं होती.
योग्स....
2 comments:
मीरा जी ना सहेती राणा के हर सितम,
गर उन्हें भी कान्हा सें प्रीत नहीं होती,
waah .....
bahut khoob .....!!
thnx a lot, take care
Post a Comment