तुम्हारे जन्मदिन पर
Monday, August 10, 2009
सोच को अधूरा पाया है
मेरी ज़िंदगी में तू है
मेरी सोच में तो बस एक साया है
तू आज के ज़माने में कहीं भी नही
तू फरिश्तों की छोड़ी हुई
नेकियों का गुलदस्ता है
कभी तू मेरी हमसफ़र है
कभी तू मेरे सफ़र का रस्ता है
मंदिरों के करीब से जब गुज़रता हूं
तेरा ही कोई अक्स उभरता है
तेरी ही तो आवाज़ सुनाई देती है
जब कोई आरती पढ़ता है
एक लम्हा भी अगर घर में ना रहे
पूरा घर परेशान होता है
कभी तू ज़िंदगी बन जाती है
कभी तू हो तो जीना आसान होता है
तू मेरे इस घर के लिए
हज़ार हज़ार रूप धरती है
मैं बस तुझे प्यार करता हूं
तू घर की हर ईंट पे मरती है
खुदा करे हमारा साथ बना रहे इसी तरह
कभी कोई फासला महसूस ना हो
हम साथ हैं तो हर लम्हा अच्छा मुहूरत है
कभी कोई एक पल मनहूस ना हो
फरिश्तों ने तुझे अदाएँ दी हैं हज़ारों
उन अदाओं से मुझको नवाज़ा करना
वस्ल के लम्हे हों कि हिज़ृ के, बसी होते हैं
तू फिर मुहब्बत के लम्हों को ताज़ा करना
तेरे छूने से पल फिर खिल जाएँगे
हमे हमारे पुराने दिन रात मिल जाएँगे
ज़िंदगी ज़ख़्म नये भी देती रहेगी
तेरे छूने से वो ज़ख़्म सिल जाएँगे