"क्या माजरा था?"

Sunday, September 2, 2007

"क्या माजरा था?"


***राजीव तनेजा***

"आज जन्मदिन है मेरा..लेकिन दिल उदास है"

"पुरानी यादें जो ताज़ा हो चली हैँ"....

"उस दिन भी तो जन्मदिन ही था मेरा"...

"जब मै अड गया था कि गिफ्ट लेना है तो बस...

'कप्यूटर ही लेना है"...

"उसके अलावा कुछ नहीं"

"ज़िद क्यों ना करता मैँ?"...

"आखिर पास जो हो गया था मैँ लगातार ....

तीन साल फेल होने के बाद"

"अब आपको भला क्यों बताऊँ कि कैसे पास हुआ था मैँ"

"पिताश्री के हज़ार ना-नुकुर करने के बाद भी ज़िद पे अडा रहा मैँ"...

"हज़ार फायदे समझाए कि... इस से ये कर सकते है और ...वो भी कर सकते हैँ"

"तब जा के बडी मुशकिल से माने और कंपयूटर खरीद के देना ही पडा उनको"

"पूरे पचास हज़ार खर्चा हुए"

"अब तो खैर इतने में तीन भी आ सकते हैँ"

"ज़माना बदल गया है"

"आता-जाता तो कुछ था नहीं ,लेकिन....

एक दोस्त ने कुछ ऐसे गीत् गाए कंप्यूटर के कि...

"रहा ना गया"

"अब यार नयी-नयी जवानी की शुरूआत हुई थी और उस दोस्त ने जैसे ...

'बारूद'के ढेर को चिंगारी दिखा दी हो"

"जो मैँ कभी सपने में भी नहीं सोच सकता....

"उस सब भी दर्शन करवा दिये उसने बातों-बातों में"

"एक से एक टाप की आईटम"...वो कान में धीरे से फुसफुसाते हुए बोला

"अब अपने मुँह से कैसे कहूँ?"कि क्या-क्या सपने दिखाये उसने

"अब तो ना 'टीवी' की तरफ ही ध्यान था और ना ही 'दोस्त-यारों'की तरफ"

"दाव लगा के 'पत्ते'खेलना तो मैँ जैसे भूल ही गया था"

"मैने भी आव देखा ना ताव और चल दिया तुरंत ही कंप्यूटर खरीदने"....

"इंटर्नैट तो सबसे पहले लगवाना ही था"...

"सो...लगवा लिया"...

"उसके बिना भला कंप्यूटर किस काम का?"

"असली जलवा तो इंटर्नैट का ही था"....

"दोस्त ने कुछ उलटी-पुलटी 'साईट्स' के पते भी मुँह ज़बानी रटवा दिए थे अपुन को"

"सो जैसे ही नैट चालू हुआ...

इधर-उधर चुपके से देखा"...

"कोई नहीं था"...

"झट से दरवाज़ा बन्द किया और चला दी वही वाली स्पैशल वाली साईट"

"देख के चक्कर खा गया कि...

दुनिया कहाँ से कहाँ जा रही है और हम है कि बस"....

"इतने में पता नहीं कहाँ क्लिक करने के लिए लिखा हुआ आया और...

मुझ नादान से वहीं क्लिक कर दिया"

"अभी देख ही रहा था कि क्या होता है...कि...

दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आयी"...

"घबरा के साईट बन्द करने की कोशिश कि तो ...

"ये क्या?"....

"एक को बन्द करो तो साली फुदक के दूसरी टपक पडती"

"उसको बन्द करो तो कोई और टपक पडती"...

"पसीने छूट रहे थे इनके जलवे देख-देख"और उधर लग रहा था कि....

आज बाबूजी ने दरवाज़ा तोड डालने की ही सोची हुई है"

"खडकाए पे खडकाए चले जा रहे थे"

"तनिक भी सब्र नहीं "...

"बन्दे को सौ काम हो सकते हैँ"....

"अब कौन समझाए इनको कि अब मैँ बडा हो गया हूँ"...


"अब तो ये टोका-टाकी बन्द करो"

"इधर मुय्या कंप्यूटर था कि...

'आफत पे आफत' खडी करने को तैयार"

"कैसे बन्द करूँ इस मरदूद को?"

"कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ?और क्या ना करू?"

"इतने में शुक्र है कि लाईट चली गयी और जान में जान आयी"

"दिमाग चक्कर खाने कोथा कि क्या ऐसा भी हो सकता है ?"

"जिनको हम बडे पर्दे पर देख-देख 'आहें'भरा करते थे...

'शरमाया'करते थे...

वो साक्षात मेरे सामने बिना....."

"अब अपने मुँह से कैसे कहूँ?"

"लेकिन दिल था कि..खुशी के मारे उछल-उछल रहा था" ...

"रात के तीन बज चुके थे....

"आँखे लाल हुए जा रही थी"....

"नींद आँखो से कोसों दूर ...नामोनिशां भी नहीं था उसका"

"सर्दी के मौसम में भी पसीने छूट रहे थे"

"कहीं कुछ मिस ना हो जाए...इसलिए झट से प्रिंटर का बटन दबा दिया".

"रूप की देवियाँ साक्षात मेरे सामने ....एक-एक करके प्रिंटर से बाहर ...

खुद ही मुझ से मिलने को बेताब हुए जा रही थी"..

"मानो उनमें होड सी लगी थी कि पहले मैँ मिलूगी राजीव से ....और पहले मैँ"...

"कमर का एक-एक बल साफ झलक रहा था"

"हाय!... वो 'लचकती',..

'बल खाती'कमर..
.
"हाय ..मैँ सदके जाऊँ"

"गला सूख रहा था लेकिन पानी के लिये उठने का मन किस कम्भख्त का कर रहा था?"

"सुबह तक कार्डिज की वाट लग चुकी थी"

"पता किया तो पूरे 'ढाई हज़ार' का फटका लग चुका था एक ही रात में"

"बाद में पता चला कि...

'टेलीफोन'...

'पेपर'...और ..

'नैट'के पैसे एक्स्ट्रा"

"कुल मिला के 'तीन हज़ार'मिट्टी हो चुके थे एक ही रात में"

"अगले दिन पिताश्री को कंप्यूटर दिखाने के लिये खोला तो...

आन करते ही फटाक से हडबडाते हुए तुरंत ही बन्द करना पडा"


"पता नहीं कहाँ से एक बालीवुड सुन्दरी की बिलकुल ही *&ं%$#@ फोटू...

आ के चिपक गयी थी मेन स्क्रीन पे"

"बहाना बनाना पडा कि "पता नहीं क्यों 'शट डाउन' हो रहा है अपने आप?"

"आन ही नहीं हो रहा है ठीक से"

"अब फोटू हटाना किस कम्भख्त को आता था?"

"फोन घुमाया तो मकैनिक ने जवाब दिया.."अभी टाईम नहीं है,अगके हफ्ते आऊँगा"

"लगता था जैसे बिजली टूट के गिरी मेरे सुलगते अरमानों पर"

"इतने दिन जिऊँगा कैसे मैँ? और...

"किसके लिये जिऊँ भी मैँ"

"निराश हो चला था "

"शायद बक्शीश ना देने का दंड भुगतना पड रहा था मुझे"

"बदला ले रहा था वो मुझसे"...

"बडी रिकवैस्ट की लेकिन वो नहीं माना"

"गुस्सा तो बहुत आया मुझे...

अगर मज्बूरी ना होती तो बताता इस बद-दिमाग को "...

"खैर थक हार कर जब जेब गरम करने का वादा किया तो..

अगले दिन आने की कह फोन काट दिया"

"साला!...लालच का मारा....

मतलबी इनसान"


"अब दिन काटे नहीं कट रहा था और ...रात बीते नहीं बीत रही थी "

"बार-बार घडी देखता कि अब इतने घंटे बचे हैँ और अब इतने उसके आने में"

"घडी की सुइयाँ मानो घूमना ही भूल गयी थी"

"रत्ती भर भी खिसकना तो मानो जैसे गुनाह था उनके लिए"

"खैर किसी तरह वक़्त कटा और सुबह होने को आयी"

"आँखे दरवाज़े पर टिकी थी और कान घंटी की आवाज़ सुनने को बेताब "

"इंत्ज़ार की घडियाँ खत्म हुई और वो आ पहुँचा"

"कुछ इधर-उधर बटन दबाए और वो गायब हो चुकी थी"

"पैसे तो लग गये लेकिन जान में जान आ ही गयी"

"कुछ दिनों तक कंप्यूटर का गुलाम हो चुका था मैँ पूरी तरह से"....

"शायद पिताश्री को भनक लग गयी थी कुछ-कुछ"

"नज़र रखने लगे थे मुझ पर"...

"कुछ-कुछ शक सा भी करने लगे थे कि...

पूरी-पूरी रात जाग-जाग कर ये आखिर करता क्या है?"

"एक दिन वही हुआ जिसका मुझे अंदेशा था ...

"पता नहीं पिताजी के हाथ वो प्रिंट-आउट कैसे लग गये?"

"मुझे नैट के साथ-साथ कंप्यूटर से भी हाथ धोना पडा"

"अब कंप्यूटर उनके कमरे में शिफ्ट हो चुका था"....

"पता नहीं क्या करते रहते हैँ पिताश्री सारी-सारी रात?"

"कमरा तो अन्दर से बन्द ही रहने लगा था"और...

"टेलीफोन भी कुछ ज़्यादा ही बिज़ी रहने लगा था"

"अब तो ये वो ही जाने या फिर ऊपरवाला जाने कि आखिर...

"माजरा क्या था?"

***राजीव तनेजा***

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"घूमती है दुनिया घुमाने वाला चाहिए"

Monday, August 20, 2007

"घूमती है दुनिया घुमाने वाला चाहिए"
"घूमती है दुनिया घुमाने वाला चाहिए"

***राजीव तनेजा***


"आय हाय .....

"आज फ़िर् कबाड उठा लाए? बीवी 'वी.सी.डी' भरे लिफ़ाफे को ..

पलंग पे पटकते हुए बोली


"कुछ अकल-वक्ल भी है कि नहीं?

"अभी पिछ्ली वाली तो देखी नहीं गयी ढंग से .....

ऊपर से और उठा लाए "...


"फ्री में बंट रही थी क्या ?"


"हमेशा 'पैसे उजाडने' की ही सोचा करो ....

ये नहीं की कुछ ऐसा काम करो कि ....

'नोटों की बारिश'हो ."


"उल्टे जो थोड़े-बहुत हैं उनका भी ...

'बँटाधार' करने पे तुले हो"

बीवी जो एक बार शुरू हुई तो बिना रुके बोलती चली गयी....

"अरे यार सस्ती मिल रही थी तो मैं ले आया "


"हुँह ...सस्ती मिल रही थी तो पूरी दुकान ही उठा लाए जनाब ?"

"अब तुम भी ना"..

"पता नहीं क़ब् अकल आएगी तुम्हे ?"..

"जो चीज़ देखते हो सस्ती .....

'थोक के भाव'उठा लाते हो"....


"भले ही बाद मैं पडी पडी सड्ती फिरे ....तुम्हारी बला से."


"अब उस दिन आलू क्या दो रुपए किलो मिल गये .....

'पूरी बोरी' ही लाद लाए."


"मैं तो तंग आ चुकी हूँ....

दिन भर् 'आलू'बनाते और खाते".....


"यार बच्चों को पसंद है".....


"तो क्या उन्हें भी अपनी तरह तोन्दुमल बना डालोगे?"


"कुछ तो ख़्याल किया करो अपनी सेहत का"......


"कोई फ़िक्र है ही नहीं ".....


"सब् की सब् टैंशन मेरे ही ज़िम्मे जो सौंप रखी हैं....


"ये नहीं की कोई अच्छा काम करते और ...


नोट कमाने का बढिया सा जुगाड़ ढूढते "



"ये क्या की हर वक़्त बस नोट फूँकने के तरीक़े तलाशते रेहते हो?"....


"अरे पूरी दुनिया लखपति हुए जा रही है और ....

तुम हो कि करोड्पति से लखपति पे आ गये.".....


"अब क्या कंगाल होने का इरादा है?"


मुझसे रहा ना गया और दाँत पीसते हुए बोला...

"बडी अपने को अकलमंद समझती हो तो फ़िर्...

तुम ही कोई आईडिया क्यूं नहीं दे देती खुद ही कि....

कैसे रातों-रात लखपति बना जाए."



"इसमें भला कौन सी बडी बात है ?" बीवी ने तपाक से उत्तर दिया....

"रेडियो',टीवी ना देख के इन मुई फिल्मों के चक्कर मैं रातें काली करते फ़िरोगे तो यही होगा ना ."


"ना दींन-दुनिया की ख़बर ना ही किसी और चीज़ की फ़िक्र."..


"बस खोए रहते हैं इस मुई 'ऐश्वर्या' के चक्कर में."


"अरे बीस-बीस बार एक ही फिल्म देखने से गोद में नहीं आ बैठेगी."

"तुम्हारी किस्मत मैं मैं ही लिखी हूँ बस ".....

"ख़बरदार जो किसी की तरफ़ आँख उठा के भी देखा तो....

"वहीं के वहीं खींच के बेलन मारूंगी कि सर पे पट्टी बांधे डोलते फ़िरोगे इधर उधर"

वो फ़िर् जो शुरू हुई तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी कि ....


मुझे मजबूरन बीच मैं टोकना पडा.....

"तुम तो लखपति बनने के 'जुगाड़' बता रही थी....

"क्या हुआ ?"

"कहाँ गया आइडिया?"

"बस निकल गई हवा ?"

"हा !... कहना कितना आसान है ....

बस मुँह खोला और झाड़ दिए दो-चार लेक्चर"...


"इसमें कौन सा टैक्स लग रहा है?"....


बीवी ग़ुस्से से मेरी तरफ़ देखती हुई बोली

"अरे बेवकूफ़ अकल लडा और 'एस.एम.एस'भेज....."


"एस.एम.एस' भेज के अक्ल लडाऊं?"

"ये कौन सा तरीक़ा है लखपति बनने का ?"


"अरे बाबा रोज़ तो आ रहा होता है टीवी पे कि फलाना और ढीमका लिख के .....

फलाने -फलाने नंबर पे 'एस.एम.एस'करो और लाखों के ईनाम पाओ "


"अब कल ही तो आ रहा था कि 'जैकपाट' लिखो और फलाने नंबर पे 'एस.एम.एस' करो ...

"पता नहीं कितने लखपति बन चुके होंगे अभी तक और हम हैं कि बैठे हैँ वहीं के वहीं "

"कुछ का तो नाम भी बार-बार अनाउंस कर रहे थे और एक-दो क फोटू भी छपा देखा था अखबार में"



"पता है कितना खर्चा है एक 'एस.एम.एस' का?मैने 'तिरछी नज़र' से देखते हुए कहा......

"पूरे दस क नोट स्वाहा हो जात है एक ही बार में "

"अरे कुछ नहीं है बस 'फुद्दू' खींच डाल रहे हैं सरासर और ...

पब्लिक है कि मानो जन्म से ही तैयार बैठी हो जैसे कि

"आओ भाईजान... आ जाओ ,तुम ही बताओ कि कहाँ माथा टेकना है ?"


"अरे घूमती है दुनिया घुमाने वाला चाहिए"


"दस-दस करके पता नहीं कितने का गेम बजा डालते है रोज़ के रोज़ " और ....

बाँट डालते हैँ आठ-दस लाख दिखावे की खातिर"....

"इनके बाप का जाता ही क्या है आखिर?"


"बाक़ी सब् का क्या होता है?" बीवी उत्सुकता से मेरी तरफ ताकती हुई बोली


"सब् का सब् डकार जाते हैं साले खुद ही"


"लेकिन पैसा तो मोबाइल कंपनी वालों को मिलता है ....


'रेडियो-टीवी वालों को भला इसमें क्या फ़ायदा?"


"अच्छा ? साले सब के सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैँ ".....

"मिलीभगत है सबकी "

"इस हमाम में सभी नंगे हैँ"

"टी वी वाले या फिर कोई और"

"सब मिल-बांट के खाते हैँ"

"सबका हिस्सा होता है "

"हाँ... लेकिन एक बात की तो दाद देनी पडेगी "....

"वो भल्ला क्या?"

"होते साले बडे ही ईमानदार हैँ "


"ईमानदार ?"

"भांग तो नहीं चढ़ा रखी कहीं?.....

'अभी-अभी तो केह रहे थे कि......

सब् साले चोर हैं और अब ये क्या बके चले जा रहे हो ?"

"किसी एक बात पे तो टिका करो "


"अरे तो क्या ईमानदारी का ठेका सिर्फ हमने या फिर तुमने ही लिया हुआ है ?"

"ये किसने कह दिया कि चोर ईमानदार नहीं होते ?"


"पाई-पाई क हिसाब एकदम एकूरेट रखते हैँ साले "

"जिसका जितना बनता है ...

बिना मांगे ही पहुँच जाता है उसके 'खाते' मैं ."


"और लो.....

अब तो इन मुए अखबार वालों को भी चाव चढ चुका है इस कंभखत मारी'एस.एम.एस' नाम की बिमारी का"

"वो भी कूद पडे हैँ इस गोरख-धन्धे में"


"बस कोई बात हो या ना हो 'एस.एम.एस के जरिए सबकी वाट लगाने को तैयार बैठे रहते हैँ हरदम"

"अब तू खुद ही बता कि एक भाई ने दूसरे को गोली मार दी तो इसमें'एस.एम.एस'भला कहाँ से आ गया?"....

"फिर भी ये साले टीवी वाले कहते हैँ कि 'एस.एम.एस' भेजो कि बंदा बचेगा कि नहीं ? "


"अगर बचेगा तो 'Y' टाईप करो और . ..

अगर लुडकेगा तो 'N' टाईप करो "

"अब भले ही वो बचे ना बचे लेकिन इनका तो बचत खाता खुल ही गया मलाई मार के "

"चाहे प्रोग्राम कोई रोने-धोने वाला सास-बहू टाईप हो या कोई हँसाने वाला या फिर कोई ...

खबरों का सबसे 'तेज़ चैनल'ही क्यों ना हो ,.. .

सभी के सभी लूटने में मस्त हैँ"

"इनका बस चले तो निचोड ही डालें आम आदमी को "

"थोडे से ईनाम का झुनझुना दिखा के लार टपका डालते हैँ और फिर जेब का ढीला होना तो लाज़मी ही समझो "

"अब पहले तो किसी एक बंदे को पूरे एक करोड का लालीपाप दिखाओ और बाँध डालो एग्रीमैंट के चक्कर में कि ....

ले बेटा अब तू गा और बजा आराम से पूरे साल,इंडिया का आईडल जो है तू"


"मानो इनसान ना हुआ कोई गाय-भैंस हो गयी कि पूरे एक साल तक जी भर के दुहो "


"बाप का राज़ जो है "

"लेकिन किस्मत तो जाग उठी न उसकी? मेरा भी फेवरेट है वो" बीवी कह उठी ...


"चलो माना कि किस्मत जाग उठी उसकी , लेकिन किनकी जेबों की कीमत पर?"

"हमारी तुम्हारी ही जेबों पर पानी फिरा है ना?"


"पता नहीं कितनो की जेबें ढीली हुई और कितनो ने तिज़ोर्रियाँ भरी"

"इसको बताने वाला कोई नहीं".......

"अगर कुछ बांट भी दिया तो कौन सा उनके बाप का गया?"

"चैनल की 'टी.आर.पी' बडी सो अलग "

"सालों ने अपनी खुद ही किस्मत बना डाली है और पब्लिक है कि ...

ऊपरवाले के भरोसे बैठी है कि वो ही आएगा और उनकी किस्मत संवारेगा एक दिन "


"अरे बेवाकूफो .. कोई नही आने वाला"

"सरेआम लूट है लूट."

"कोई 'रोकने' वाला नहीं"...

"कोई 'टोकने' वाला नहीं"

सब एक-दूसरे का फुद्दू खींच रहे हैँ "


"मैँ तो यही सोच रहा था कि सिर्फ हिन्दोस्तान में ही फुद्दू बसते हैँ लेकिन ...

अब तो ये जग-जाहिर हो गया है कि पूरी दुनिया ही भरी पडी है ऐसे बावलों से "


"वो भला कैसे?" बीवी असमंजस भरी निगाहों से मेरी तरह देखते हुए बोली


"अब तुम खुद ही देखो ना...

"कुछ गिने-चुने बंदो ने दिमाग लडाया और पूरी दुनिया को ही एक झटके में शीशे में उतार डाला....

साले खुली आँखो से ऐसे काजल चुरा ले गये कि जागते हुए भी सोते ही रह गए सब के सब "

"कोई कुछ भी उखाड नही पाया उनका"

"वो भला कैसे?"

"साले कुछ गिने-चुने नमूनो ने 'सात अजूबों' के नाम पे एक वैब साईट बनाई और ...

पूरी दुनिया को चने के झाड पे चढा पे चढा के कहते हैं कि ...

'वोट'करो और साबित करो कि दुनिया के सात अजूबे कौन कौन से हैँ?"

"इन साले नमूनो के चक्कर में 'एस.एम.एस' भेज भेज के पूरी दुनिया खुद ही नमूना बन बैठी"

"पैसे तुम्हारा बाप देगा 'एस.एम.एस' के ?

"और तुम गवर्नर हो जो तुम्हें साबित करें?"

"आखिर तुम होते कौन हो ये सब तय करने के लिये?"

"किसने तुम्हें अधिकार दिया?"

"ना तुम 'यू.एन.ओ' से हो न ही किसी और 'विश्व-व्यापी' संस्था से "


"ये तो माना कि दूसरे की जेब से पैसा निकालना आसान नहीं लेकिन....

इन सालों ने मिल कर ऐसा फूल-प्रूफ जुगाड़ बना डाला है कि....

सब के सब मरीज़ बने बैठे हैँ इस 'एस.एम.एस' रूपी बिमारी के"


"जेब से नोट खिसकते जा रहे हैं लेकिन ....

किसी को कोई फिक्कर-ना-फाका"

"उलटे साले बंदे को ये खुश-फहमी और दे डालते हैँ कि ...

'ये हुआ' तो या फिर 'वो जीता' तो सिर्फ और सिर्फ उसके 'एस.एम.एस' की वजह से

और बंदा बेचारा फूल के कुप्पा हुए जाता है कि चलो एक नेक काम तो किया "


"खाक अच्छा काम किया?"

"सरे बाज़ार कोई कपडे उतार ले गया और साहब को इल्म ही नहीं"

"उलटे खुशी से अगले 'एस.एम.एस' की तैयारी में जुटे दिखाई देते हैँ जनाब"

लगता था कि आज सारा का सार गुस्सा इन चोरों पर ही निकल पडेगा कि अचानक...

कॉल बेल बजी और साले सहब के चहकने की आवाज़ सुनाई दी

मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए ख़ुशी के मारे उछल् रहे थे


"लो जीजा जी मुँह मीठा करो"

मिठाई देखते ही मुँह में पानी आ गया....

टूट पडा मिठाई पर

दो-चार टुकडे मुँह में ठूसने के बाद डकार मारता हुआ बोला...

"जनाब किस खुशी में मिटाई बांटी जा रही है?"

इस पर बीवी बोल पडी ...

"इतनी देर से यही तो गा रही हूँ लेकिन तुम्हारे पल्ले बात पडे तब ना "


"ईनाम निकला है मेरे भाई का "

'एस.एम.एस' भेजा था"


"अच्छा..."


"कितने का ईनाम निकला है ?"


"पूरे पचास हज़्ज़र का"


"ओह...ज़रा टीवी तो ओन करना "मैँ मोबाईल संभालता हुआ बोला


"क्यूँ?"...

"क्या इरादा है जनाब का?" बीवी मंद-मंद मुस्काते हुए बोली


"एस.एम.एस' का ही इरादा होना है और भला किसका " मैँ झेंपता हुआ बोला

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टूट कर बिखरने का डर है

Thursday, July 26, 2007

टूट कर बिखरने का डर है तो शीशे का महल बनाते क्यों हो
डरते हो जमीं पर चलते हुये तो इतनी ऊंचाई पर जाते क्यों हो

दिन में अगर मुझसे बिछुड कर चले जाते हो खुद कोसो दूर
रात को सपनों में आ-आ कर इशारों से मुझको बुलाते क्यों हो

जिन्दगी आसान बहुत है सांसों की रफ़्तार रुक जाने के बाद
मरने भी तो दो मुझको रोज एक नया ख्वाब दिखाते क्यों हो

किस्सा एक और टूटे हुये दिल का हो जायेगा सीने में दफ़न
नाजुक सा दिल है मेरा जानते हो फ़िर ठेस लगाते क्यों हो

मान कर बात इस दिल की गहरी चोट जिगर पर हमने खायी
इतना काफ़ी न था क्या, तोहमतें और हम पर लगाते क्यों हो


by
Mohinder ji

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Maa Tuzhko dekha hi nahiN

Maa Tuzhko dekha hi nahiN


Maa Tuzhko dekha hi nahiN
Tu de apna avtaar kabhi,
Ye duniya azab nirali hai,
Kerti na muzhe kyuiN pyaar kabhi.

Na milta pita ka pyaar muzhe,
Na mile duniya ka dulaar muzhe,
Sang le ja muzhko tu apne,
Ya sapnoN maiN de aakaar kabhi.

YuiN pal-pal toote dil apna,
KyuiN dil ki keemat kutchh bhi nahi,
Kya bhookhey bilakhte mar jayeiN,
KyuiN khule na kisi ka dwaar kabhi.

ZulmoN ki barkha sehte hum,
Apni koi patwaar nahiN,
YuiN ashq baheiN akhiyan se sada,
Daaman meiN jo le gumkhaar nahiN.

By Harash Mahajan

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ab jo ik hasrat-e-javaanii hai

Tuesday, June 12, 2007

इस चिट्ठे को आप यहा हिंदी और रोमन मे भी देख सकते है

ab jo ik hasrat-e-javaanii hai
umr-e-raftaa kii ye nishaanii hai


(This yearning for youth that I now have
is but a relic/sign of my past life/bygone time)


Khaak thii maujazan jahaa.N me.n, aur
ham ko dhokaa ye thaa ke paanii hai


(The world raised waves of dust/ashes
and I took it to be a ocean)


giriyaa har vaqt kaa nahii.n behech
dil me.n ko_ii Gam-e-nihaanii hai


(My weeping is not without reason
there must be some grief hidden in my heart)


ham qafas zaad qaidii hai.n varanaa
taa chaman parafashaanii hai


(We are prisoners who are fond of our cages
For the garden is but a wing's beat away)


yaa.N huye 'Meer' ham baraabar-e-Khaak
vaa.N vahii naaz-o-sargiraanii hai


(Here, Meer, we lower ourselves to the very dust
There, pride still reigns supreme)

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baraso.n ke baad dekhaa ik shaKhs dil_rubaa saa - by Ahmed Faraz

Saturday, June 2, 2007

baraso.n ke baad dekhaa ik shaKhs dil_rubaa saa


baraso.n ke baad dekhaa ik shaKhs dil_rubaa saa
ab zahan me.n nahii.n hai par naam thaa bhalaa saa

abaruu khi.nche khi.nche se aa.Nkhe.n jhukii jhukii sii
baate.n rukii rukii sii lahajaa thakaa thakaa saa

alfaaz the ke jugnuu aavaaz ke safar me.n
ban jaaye jangalo.n me.n jis tarah raastaa saa

Khvaabo.n me.n Khvaab us ke yaado.n me.n yaad us kii
niindo.n me.n ghul gayaa ho jaise ke rat_jagaa saa

pahale bhii log aaye kitane hii zindagii me.n
vo har tarah se lekin auro.n se thaa judaa saa

agalii muhabbato.n ne vo naa_muraadiyaa.N dii.n
taazaa rafaaqato.n se dil thaa Daraa Daraa saa

kuchh ye ke muddato.n se ham bhii nahii.n the roye
kuchh zahar me.n bujhaa thaa ahabaab kaa dilaasaa

phir yuu.N huaa ke saavan aa.Nkho.n me.n aa base the
phir yuu.N huaa ke jaise dil bhii thaa aabalaa saa

ab sach kahe.n to yaaro ham ko Khabar nahii.n thii
ban jaayegaa qayaamat ik vaaqi_aa zaraa saa

tevar the beruKhii ke andaaz dostii ke
vo ajanabii thaa lekin lagataa thaa aashnaa saa

ham dasht the ke dariyaa ham zahar the ke amrit
naahaq thaa zo.Num ham ko jab vo nahii.n thaa pyaasaa

ham ne bhii us ko dekhaa kal shaam ittefaaqan
apanaa bhii haal hai ab logo 'Faraz' kaa saa

Ahmed Faraz

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"Benaam Sa Ye Dard"

Saturday, May 26, 2007

"Benaam Sa Ye Dard"

By Neha Parikh

Benaam Sa Ye Dard, Thehar Kyon NahinJata
Jo Beet Gaya Hai,Woh Guzar Kyon Nahin Jata

Sab Kuch Toh Hai, Kya Dhundti Rehti Hai Nigaahein
Kya Baat Hai, Mainn Waqt Pe Ghar Kyon Nahin Jata

Woh Ek Hi Chera Toh Nahin Saare Jahan Mein
Jo Door Hai Woh Dil Se Utar Kyon Nahin Jata

Main Apni Hi Uljhi Hui Rahon Ka Tamasha
Jate Hain Jidhar Sab Mainn Udhar Kyon Nahin Jata

Woh Naam Jo Na Jane Kab Se, Na Chehra Na Badan Hai
Woh Khawaab Agar Hai To Bikhar Kyo Nahi Jata"

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aa.Nkh se duur na ho dil se utar jaayegaa- Written by Ahmed Faraz sahaab

Friday, May 25, 2007

aa.Nkh se duur na ho dil se utar jaayegaa
vaqt kaa kyaa hai guzarataa hai guzar jaayegaa

itanaa maanuus na ho Khilvat-e-Gam se apanii
tuu kabhii Khud ko bhii dekhegaa to Dar jaayegaa

[maanuus=intimate; Khilvat-e-Gam=sorrow of loneliness]

tum sar-e-raah-e-vafaa dekhate rah jaaoge
aur vo baam-e-rafaaqat se utar jaayegaa

[sar-e-raah-e-vafaa=path of love; baam-e-rafaaqat=responsibility towards love]

zindagii terii ataa hai to ye jaanevaalaa
terii baKhshiish terii dahaliiz pe dhar jaayegaa

[ataa=gift; baKhshiish=donation; dahaliiz=doorstep]

Duubate Duubate kashtii to ochhaalaa de duu.N
mai.n nahii.n ko_ii to saahil pe utar jaayegaa

[ochhaalaa=upward push]

zabt laazim hai magar dukh hai qayaamat kaa 'Faraz'
zaalim ab ke bhii na royegaa to mar jaayegaa

Contributed by Saqib

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अभी aur bhi hai baki raaho.N main

Thursday, May 24, 2007

Dear friends,
maine bahut koshish ki thi ki holidays par jane se pahile main is list ko puri tarah update kar doon aur sabhi ka kaam aur naam isme shamil kar loon, lekin mumkin na ho saka aur waqt aa gaya hai mere jane ka , doston jinka naam bhi list main na mile yaa aapki post usme update na ho to use aap meri samay ki kami samjh kar maaf kar dijiyega

8th june meri wapisi ke saath hi main ise update kar dungi i Promise

umeed ki meri is galti ko aap sab dil se nahi lagayenge aur intezaar karenge ki main apna kaam pura karke aap sabke samne rakh sakun.




with love
shrddha

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haath uThe hai.n magar lab pe duaa ko_ii nahii.n- Ahmed Faraz

Wednesday, May 23, 2007

haath uThe hai.n magar lab pe duaa ko_ii nahii.n
kii ibaadat bhii vo jis kii jazaa ko_ii nahii.n

[duaa = prayer; jazaa = reward]

ye bhii vaqt aanaa thaa ab to gosh har aavaaz hai
aur mere barbaad-e-dil me.n sadaa ko_ii nahii.n

aa ke ab tasliim kar le.n tuu nahii.n to main sahii
kaun maanegaa ke ham me.n bevafaa ko_ii nahii.n

vaqt ne vo Khaak u.Daa_ii hai ke dil ke dasht se
qaafile guzare hai.n phir bhii naqsh-e-paa ko_ii nahii.n

[dasht = desert/wildnerness; qaafile = caravans]
[naqsh-e-paa = footprints]

Khud ko yuu.N mahasuur kar baiThaa huu.N apanii zaat me.n
manzile.n chaaro.n taraf hai raastaa ko_ii nahii.n

[mahasuur = surrounded; zaat = self/one's personality]

kaise raasto.n se chale aur kis jagah pahu.Nche 'Faraz'
yaa hujuum-e-dostaa.N thaa saath yaa ko_ii nahii.n

[hujuum = crowd]

AHMED FARAZ

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Tuesday, May 22, 2007

"TUM"

By Neha Parikh

Yeh pal pal ka chalna,
fasla khatam na karega,
Tum kitna bhi chaho,
tumhe woh kal na milega!

Yeh koi gaata hai,
ya namaaz padta hai,
Tum kitna bhi chaho,
tumhe alag khuda na milega!

Yeh guzarti hui raat hai,
ya nikalti hui sehar,
Tum kitna bhi chaho,
tumhe humsafar na milega!

Yeh Baarish ki boondein hain,
ya aankhon ke aansoon,
Tum kitna bhi chaho,
inhe thaamne wala na milega!

Yeh dil ke tukde hain,
ya aap ki yaadein,
Tum kitna bhi chaho,
tumhe marham na milega!

Yeh dil mein armaan hain,
ya sulagte hue sholey,
Tum kitna bhi chaho,
tumhe sehra mein paani na milega!

Yeh kaisi uljhan ban gayee hai,
dil ki dhadkan,
Tum kitna bhi chaho,
tumhe sukoon na milega!!"

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इंतज़ार था न आपको???

Sunday, April 29, 2007

इंतज़ार था न आपको??? चलिये अब हो गया खत्म आखिरकार...

बायीं तरफ मेनू में शायरों के नाम हैं, उन पर क्लिक करके आप उनकी गजलों की सूची देख सकते हैं और साथ ही जा कर पुरी ग़ज़ल पढ़ सकते हैं।

तो कीजिये क्लिक और पढिये कुछ नया, जो गुनगुनाया जा सके...

वैसे पुरी सूची बनाने में थोडा वक़्त और लगेगा पर रुकियेगा नहीं... हो जाइये हमारे हमकदम...

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नमस्कार...

अब हम यहाँ लेकर आ रहें हैं शायर परिवार के सभी सदस्यों को...

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