Aisa nahi ki humko Mohabbat nahi mili
Wednesday, April 2, 2008
1:- Aisa nahi ki hamko mohabbat nahi mili,
Beher - 221-2121-1221-212
Aisa nahi ki humko Mohabbat nahi mili
Thi jiski aarzoo,wahii daulat nahi mili
jo dekh le to mujhse kare rashk zamaanaa
Sab kuch mila magar wohii qismat nahi mili
Ghar ko sajaate kaise,ye har ladhki seekhtii
Zinda rahe to kaise naseehat nahi mili
kisko sunaayeiN qissa yahaan, tere zauf ka
kahte haiN hum sabhi se ki aadat nahi mili
Dekha giraa ke khud ko hii qadmon main uske aaj
“Shrddha” naseeb main tujhe qurbat nahi mili
ऐसा नहीं कि हमको मोहब्बत नहीं मिली
थी जिसकी आरज़ू वही दौलत नहीं मिली
जो देख ले तो मुझसे करे रश्क ज़माना
सब कुछ मिला मगर वही क़िस्मत नहीं मिली
घर को सजाते कैसे,ये हर लड़की हैं सीखती
ज़िंदा रहे तो कैसे नसीहत नहीं मिली
किसको सुनाएँ क़िस्सा यहाँ, तेरे ज़ॉफ का
कहते हैं हम सभी से कि आदत नहीं मिली
देखा गिरा के खुद को ही क़दमों में उसके आज
“श्रद्धा” नसीब में तुझे क़ुरबत नहीं मिली
3 comments:
देखा गिरा के खुद को ही क़दमों में उसके आज
“श्रद्धा” नसीब में तुझे क़ुरबत नहीं मिली
wah ji wah behtarin likha he....
ऐसा नहीं कि हमको मोहब्बत नहीं मिली
सब कुछ मिला मगर वही क़िस्मत नहीं मिली
wah..!!! sraddhaji....kitni aasani se gaheri baat kahi apane.....
घर को सजाते कैसे,ये हर लड़की हैं सीखती
ज़िंदा रहे तो कैसे नसीहत नहीं मिली
वाह-वाह
बहुत ही मर्मस्पर्शी शेर बन पड़ा है.
द्विजेन्द्र द्विज
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